पाश्चात्य दार्शनिक अरस्तु का कहना था कि हर पीढ़ी का पिता अपने बच्चो से कहेगा कि तुम फैशन करते हो।यह जनरेशन गेप हमेशा रहेगा।
लेकिन अरस्तु को भी नही पता होगा कि आने वाला समय पिता और बच्चो को दूर कर देगा, बच्चे राहु की गोद में बड़े होंगे। माता पिता के पास बच्चो के लिये समय ही नही होगा और वो राहु अशुभ हुआ तो बच्चा स्वयं के लिये ही नही परिवार और संसार के लिये भी विनाशकारी हो सकता है।
एक नन्हा बालक बुध के समान होता है, नाजुक चंचल, उसे बंधन नही पसंद वो खिलौने चाहता है। पहले चंद्र यानि माँ और सूर्य यानि पिता के साथ खेलता कूदता बड़ा होता था यह बुध।
फ़िर जब इस बुध को विद्यालय में प्रवेश कराते थे तो वो गुरु के अनुशासन में रोता बिलखता लेकिन धीरे धीरे मित्रता कर लेता था, इस बुध रूपी बालक मे अनुशासित जीवन को स्वीकार करने की आदत सहजता से आ जाती थी। उसे घर मे दादा दादी नाना नानी के रूप मे भी गुरु मिलते उसका विकास गुरु के संरक्षण में होता था। उसको जो भी ज्ञान मिलता वो यथार्थवादी होता, आध्यात्मिक होता। वो बुध धीरे धीरे परिपक्व मंगल बनने लगता। जो जीवन के संग्राम मे ठोस धरातल पे खड़ा स्वयं को पाता था।
समय बदला संयुक्त परिवार टूटने लगे। बच्चे, शनि यानि आया के भरोसे बड़े होने लगे। बुध के जीवन से चंद्र की शीतलता जाने लगी और सूर्य की गरमाहट। इलेक्ट्रोनिक गजेट्स टी.वी., मोबाइल और कम्प्यूटर बुध के गुरु बनने लगे। बुध को अनुशासित करने वाला कोई न रहा, क्योकि यह गुरु अब राहु था।
वहाँ वो दूषित शुक्र से मिला यानि उसने पोर्न भी देखी, उसने हर प्रकार की वो दुनियाँ देखी जो सिर्फ़ एक भ्रम है, बुध और अव्यवस्थित, छली, कपटी होने लगा। वो नियत्रंण से बाहर जाने लगा। बुध अब राहु की गोदमे पला अब वो बच्चा है जो दिग्भ्रमित है, उसके पास सूचनाओ का भण्डार है किंतु ज्ञान के मामले मे वो जड़ होने लगा। अपनी संस्कृति से कटने लगा, देश, परिवार समाज सबके विरूद्ध जाने लगा। फ़िर ऐसे बच्चे कानून यानि शनि और मंगल से सजा पाते है। परिवार का नाम खराब करते है।
इस राहु की गोद में पले बुध यानि बच्चे को सूर्य और चंद्र का सानिध्य चाहिये, उसे गुरु की देखरेख चाहिये। ताकि वो शनि की पीड़ा को सहने योग्य बन सके। मंगल बनकर जीवन के मैदान में दौड़ लगा सके। अपने बच्चों को हमेशा राहु के संरक्षण में न छोड़े। उसके गुरु बने मार्गदर्शक बने।
उसे पुस्तके दे जिनका कारक गुरु है। उसे पेन कॉपी कलम दे, बुध जिनका कारक है। राहु का सानिध्य उतना ही रखे जैसे धातु की तारों में बिजली है किंतु दिखती नही, बल्कि हम उसपे प्लास्टिक कोटिंग भी करते है क्योकि यह न दिखाई दे वही अच्छा जब दिखता है तो बहुत ज़ोर का करंट देता है। व्यक्ति को मारकर ही छोड़ता है। अत: राहु का प्रयोग जीवन में सोच विचार करके करे। यह मोबाइल, टी.वी. यह सोशल नेटवर्किग से पलते बच्चे विनाश की और जा रहे है।
पहले पुस्तकों से ज्ञानार्जन करते थे, ऐसा नही कि उनके हाथ ग़लत साहित्य नही लगते थे किंतु उन पे नज़र रखना आसान था और बच्चों को सुधारा जा सकता था। अब एक सैकेण्ड में बच्चा मोबाइल या लेपटॉप का विन्डो बदल देता है। माता पिता को भ्रमित कर सकता है कि वो यहाँ से कुछ सीख रहा है जो ज्ञानवर्धक है। यही है राहु का जाल। यही है वो ब्लैक होल जिसके गुरुत्वाकर्षण के दायरे मे जो गया वो भटक गया।
हमारे शरीर के भीतर भी असंख्य नाड़ियाँ है प्रकृति ने प्रत्येक नाड़ी पे एक कोटिंग की है जिसे मायलिन शीथ कहा जाता है, जब किसी की कुंडली मे राहु का दुष्प्रभाव बढ़ने लगता है तो यह शीथ डैमेज़ होने लगती है और सबसे पहले यह मस्तिष्क को कमज़ोर करती है।
मैने पाया है कि जो बच्चे हर समय सोशल नेटवर्किंग मे व्यस्त रहते है उनको नसो से जुडे रोग होने लगे है। वो छोटी आयु मे ही प्रौढ़ होने लगे। राहु की गोद मे पलने वाले बच्चो के भीतर का बुध नही रह पाता।
अब यह हमें विचार करना है कि हमें अपने बच्चे कैसे बनाने है। वरना वो दिन दूर नही जब बच्चे भावना शून्य रोबोट
होंगें। -श्रुति आरोहन (सुरजीत तरुणा)